02 March, 2010

vedic astrolgy and Tatva--by Dr Hitesh Modha



आज पुरे विश्व में मेडिकल एस्ट्रोलोजी में काफी संशोधन के प्रचुर  मात्रा में साहित्य और अलग अलग ज्योतिष शाखा के ग्रन्थ-पुस्तके उपलब्ध है. और उतनी हि बड़ी आसानी से  कल्पना और परि-कल्पना का भी साहित्य उपलब्ध है. आज पूरा विश्व में  वैकल्पिक चिकित्सा प्रचलन दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है. तरेह तरेह की चिकित्सा प्रणाली व्यहवार में आ  रही है और आती रहेंगी. काफी चिकित्सा प्रणाली को आज भी आधुनिक विज्ञानं की मान्यता प्राप्त नहीं हुई. ऐसी प्रवर्तमान स्थिति में मेडिकल एस्ट्रोलोजी का विकास  बड़े जोर शोर से हो रहा है. पश्चिम में अमेरिका जेसे देश में काफी संशोधन भी हो रहे है. तथा चाइनिस, सायन ज्योतिष में  मेडिकल एस्ट्रोलोजी का प्रयोग बड़े जोर से रहा है.लेकिन मेडिकल एस्ट्रोलोजी की गहेराय में जाने से पहेले शरीर विज्ञानं का विस्तृत ज्ञान होना आवश्यक है. तभी तो ये प्रणाली समज पाएंगे. अगर समज पाएंगे तो हि शीख पाएंगे. हमारे भारत देश में ये वेदिक दर्शन की  श्रुंखला में  मेडिकल एस्ट्रोलोजी समाविस्ट है.वेदिक ज्योतिष और योग-दर्शन के अंतर्गत अत है. हमारे महर्षि ने सिर्फ भारत के वातावरण को लिए नहीं पर बल्कि पुरे विश्वमें  बस रहे लोगो के लिए निर्यात किया है, वे बड़े वैज्ञानिक थे.इस लिए महर्षि ने काल,समय और स्थल के आधार पे निदान करने का निर्देश किया है.
 वेदिक  काल में आयुर्वेद, ज्योतिष,दर्शन एक साथ हि पढाया जाता था(सह-शिक्षण) बाद अपनी योग्यता और लायकात के अनुशार वो समय के छात्रो विशेष शाखा में आगे बढ़ने के लिए वे अपनी रूचि मुज़ब आयुर्वेद अथवा ज्योतिष या दर्शन जेसी शाखा में विशेष महारथ हांसिल करके वोही शाखा के विशेषज्ञ बनके प्रक्टिस और संशोधन में जुटे रहेते थे. वेदिक काल में ये  स्थिति थी मेरे पाठको वो समय हम कहा थे और आज कहा है ?? आप विचार कर सकते हो.....इस में विशेषज्ञ बनने के लिए ११ वर्ष जितना अमूल्य समय महाविद्यालय को सुपरत करना पड़ता था.
वेदिक काल में आयुर्वेद, दर्शन और ज्योतिष प्रेक्टिस वाइस एक साथ था. ये तीनो विज्ञानं में एक हि बेज़ है वो है पंच-महाभूत. वेदिक महर्षि के  दर्शन अनुशार पूरा ब्रह्माण्ड इस पंच तत्त्व से बना है और जहा इस पंच-तत्त्व एक साथ पाया जायेगा वही हि जिव-सृष्टि उत्पन्न  होगी इस के साथ वेदिक महर्षियो ने और भी महत्व का अंग माना है वो है ग्रह समेत  ब्रह्माण्ड की उर्जा  और पृथ्वी का चुम्बकीय का क्षेत्र, इनका भी साथ में यथा-योग्य ताल-मेल हि जीवन सृष्टि को सुग्रथित विकास क्रम दे सकते है.ये सारी बाते हमारी संहिताओ में  परिलक्षित है.लेकिन ये सारी बाते और नियमो और सिध्धान्तो को सार-सूत्र में श्लोक के स्वरुप में दर्शायी है.सृष्टा ने की तरह ये सभी मूल तत्वों को एक चक्र की भांति सतत चलायमान रखा है १८ से ज्यादा ऋषिकुल की परंपरा में खुद महर्षि-ऋषि समेत कई  आचार्यो और पंडितो,साथ लाखो की संख्या में छात्रो ने हजारो वर्ष के कठिन और तिल-स्पर्शी संशोधन(तप) के बाद ही वेदिक दर्शन हमें प्राप्त हुआ है.ये वेदिक दर्शन ना तो सिर्फ अध्यात्मिक दर्शन है बल्कि एक अनूठा और अंतिम विज्ञानं भी है भले आज आधुनिक विज्ञानं इस बात से सहमत ना हो, लेकिन ये सत्यता पूर्ण विज्ञानं ही है जो भी आज भी प्रतीति करता है क्यों की सत्य चाहे लाखो वर्ष पुराना क्यों ना हो फिर भी वो सत्य ही है  प्रकृति के ऐसे ही कुछ सत्य से हो तो आधुनिक विज्ञानं का जन्म हुआ है विज्ञानं अन्य ग्रहों से आयात नहीं किया. इस मिटटी और उपरोक्त तत्त्व के संयोजन से ही बना है आधुनिक विज्ञानं. आज भी विज्ञानं के पास धरती माँ चुम्बकीय क्षेत्र क्यों है उनका कोई सटीक जवाब नहीं है. क्यों पृथ्वी का ढलान २३.५ से २८ डिग्री इशान की और ही  क्यों ? क्यों अग्नि और नैरुत्य कोण की तरफ और क्यों नहीं ? है जवाब आज किसी विज्ञानं के पास ? है जवाब है आधुनिक विज्ञानं के पास वो कहेंगे ये सब व्यवस्था पहेले से ही निर्मित या प्राकृतिक है. बस, यही बात को लेके हमारे महर्षि आगे बढे थे.लेकिन महर्षियो ने इसी प्राकृतिक व्यवस्था का सांगो-पांग स्वीकार किया. और इसी प्राकृतिक व्यवस्था के नियमो को उजागर कर के  प्राकृतिक विज्ञानं को आविष्कृत किया. और हमें उच्च कोटि की जीवन प्रणाली  (सभी मानव समाज को) प्रदान की.
   आगे बताये मुजब वेदिक महर्षियो ने पृथ्वी और पृथ्वी पर पलने और उत्पन्न होने वाली और इनके सम्बन्ध में आनेवाली ग्रहों और ब्रह्माण्ड की समस्त उर्जा, वतावावरण  और पृथ्वी के सम्बन्ध आने वाली सभी चीजो को पांच तत्वों में विभाजित किया.क्योकि ये सभी ५ तत्वों सिर्फ हमारी पृथ्वी पे मौजूद है.ये पंचमहाभूत का आपसी कार्य और सम्बन्ध को भी महर्षियों ने आविष्कृत किया. बाद में "पिंडे सो ब्रह्मांडे" का वरिष्ठ सिध्धांत प्रतिपादित किया.
आयुर्वेद, ज्योतिष, दर्शन, और गंधर्व में पंच तत्वों का बड़े कौशल के साथ उपयोग किया है, दुसरे शब्दों में कहे तो ये पंचमहाभूत ही मूल आधार है. हमारा शरीर भी ये पंच तत्वों से निर्मित है.ये तत्वों का यथा-योग्य संतुलन रहेगा तो मानवी का विकास और आरोग्य अखंड रहेगा   अथवा कही वातावरण जन्य, नैसर्गिक रूप से, मानसिक रूप से, शारीरिक रूप से  या फिर पोषणक्षम की आहार की कमी  से कोई एक महाभूत का असंतुलन  पर   मानव शरीर पर बीमारी ला सकता है. ये सूत्र जितना गहरा  है इतना ही रसप्रद है. छोटी सी पूर्व भूमिका से मूल विषय पर  आते है.आयुर्वेद-ज्योतिष के अनुसार चिकित्सीय  निदान के लिए जन्म-कुंडली और प्रवर्तमान खगोलीय स्थिति के साथ मनुष्य की शारीरिक और मानसिक यंत्रणा को समजना जरुरी होता है.
 प्रत्येक जातक में जन्म से एक तत्व मूल रूप से स्थायी होता है जिन्हें जन्म तत्व भी कह सकते है. इस जन्म तत्त्व सभी जातक की एक चोक्कस प्रकार की डिजाईन बनाता  है. इसी पैटर्न के आधारित जातक की  शारीरिक और मानसिक गतिविधियों के अलावा मानसिक सभी लागणी(एमोसन्स) के जड़ लागणी तक की गहेराय का अभ्यास कर सकते है, और मूल या जड़   लागणी का अध्ययन करके जातक के मन का सम्पूर्ण आलेख बना के जातक के मन को उजागर कर सकते है ये प्रक्रिया में  बहोत मोटा  अनुभव और धैर्य ज्योतिष, मेडिकल और psycology का विषद ज्ञान चाहिए और लगातार अभ्याश अध्ययन...
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पूरा ब्रह्माण्ड  Panchabhutas  (पांच तत्वों) से ही बना है  और मानव शरीर उनका लघु-सूक्ष्म रूप है.   जन्म की  तिथि, समय और जन्म स्थान, जन्मकुंडली  की मदद से जातक का प्रमुख तत्त्व का निदान कर सकते है है. .

प्रत्येक जन्म तत्व,  जातक- व्यक्ति का विशिष्ट लक्षण ka निर्देश करता है.
  •  अग्नि  तत्त्व :- प्रतिकारक शक्ति, प्राण के छोटे रूप, पाचन शक्ति, प्रजनन शक्ति  सत्ता, वीरता, संशोधन .........(सूचि बहोत लम्बी है )
  • पृथ्वी तत्व  :- उच्च सामग्री, सफलता, संतुष्टि और जो व्यापार,उद्योग  और अन्य विधायक तरीकों, लक्ष्यांक,स्थिरता, फल्द्रुपता,विधायकता, क्षमता........(सूचि बहोत लम्बी है)    .
  • आकाश तत्त्व :- ज्ञान  सतत अभ्यास,सीखना, अध्यात्म की  और उच्च विहार ज्ञान, परमात्मा के प्रति समर्पण  .
  • जल तत्व :_  सृजन, रचनात्मकता  कलात्मकता  साहित्य  कला में सफलता और लागणीशीलता, भावनात्मकता संवेदनशीलता,....  (सूचि बहोत लम्बी है)    .
  • वायु तत्व :- विचारशीलता,  कठिन से  कठिन और  अधिक शारीरिक श्रम करने की क्षमता और श्रम के प्रति आराध्य भाव, उद्यमी,मानसिक तनाव का सामना करने की क्षमता, और कड़ी मेहनत के माध्यम से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की कामना, .....  (सूचि बहोत लम्बी है) 

जातक- ( मानव) के मन - शरीर और उसके रोग को समझने में तत्व  बहुत उपयोगी होते हैं. प्रत्येक तत्व  एक ग्रह या ग्रहों के द्वारा association में है. जो अपनी विशेषताओं के स्पष्ट रूप से व्यक्ति के व्यक्तित्व में देखा जाता है
  • अग्नि तत्व  या आग तत्व सूर्य और मंगल ग्रह का शासन है.
  • जल तत्व  या पानी तत्वों चंद्रमा और शुक्र का शासन है.
  • वायु तत्व  या हवादार तत्वों शनि का शासन है
  • पृथ्वी Tatv  बुध और आकाश tatwa द्वारा शासित बृहस्पति द्वारा शासित है
ये जन्म तत्व  से केवल  कारकत्व  या significations ही   नहीं  या पूरा  व्यक्तित्व को  ठीक से समझ सकते है. यह हमारे ग्रह की  मजबूत और कमजोर स्थिति को भी आसानी से समज सकते है. 

जन्म  तत्व को   केसे खोजेंगे ?
जन्म-कुंडली के अनुसार जातक का तत्व खोजे, साथ साथ  जातक के जन्म का समय, दिन,  और जन्म स्थान का स्थानिक  सूर्योदय का समय के भी खोजे. कौन सा       तत्व का चक्र (साइकिल)  एक विशेष क्रम और विशिष्ट अवधि के साथ दोहरा रही हैं?


TATWA तत्व /
पृथ्वी
जला
तेजस
वायु
AKASHA
कुल
मिनटों में अवधि
6
12
18
24
30
90


सभी पांच तत्व के लिए कुल समय 90 मिनिट है याने  डेढ़  घंटे. सामान्य  सूर्योदय के बाद   डेढ़   घंटे तत्व  का चक्र (साइकिल) आरोही क्रम है. उसे Aroha चक्र भी कहा जाता है में होगा.  डेढ़ घंटे के उतरते चक्र अवरोह  चक्र कहेते है. शीर्ष तत्व  नीचे तल   तत्व की और तल तत्व  को शीर्ष तत्व  की और आगे बढ़ना  उसका क्रम   है. क्यों की ये  सतत  चलायमान है.

 प्रत्येक दिन  खास   तत्व  के साथ  अनुसार    शुरू होता है और Aroha और Avaroha चक्र के क्रम सत्तात्यापूर्ण  में लगातार जारी है.

रविवार या मंगलवार को पहली tatwa 18 मिनट की तेजस tatwa है और आरोही क्रम 18, 24, 30, 6 में चला जाता है और 12 जो 1 आधा घंटे बनाता है. हालांकि यह उतरते 12, 6, 30, 24 से शुरू होता है, और 18.

बुधवार को पहली tatwa पृथ्वी tatwa है. गुरुवार को सोमवार और शुक्रवार को पहली tatwa है आकाश tatwa, वह पहले tatwa जला tatwa है शनिवार को पहली tatwa वायु tatwa है.

एक उदाहरण:
एक व्यक्ति at10.30 बुधवार को पैदा 6.15 गया हूँ और उस दिन सूर्योदय हूँ. नीचे दिए गए के रूप में Aroha और Avaroha चक्र इस प्रकार हैं:

Aroha सारणी



6:15
0-06 मिनट

पृथ्वी
6,51
0-24
वायु

6,21
0-12

जला
7,15
0-30
AKASHA

6,33
0-18

तेजस
7,45


6,51






Avaroha चक्र



7:45
0-30 मिनट

AKASHA
8,39
0-39
TEJA

8,15
0-24

वायु
8,57
0-12
जला

8,39



9,09
0-06
पृथ्वी



9,15




टेबल तीन घंटे चक्र के दिखा कई गुना जन्म के समय का पता लगाने के लिए Tatwa


बुधवार

AROHA


6:15
3-00 HRS

सबसे पहले चक्र
9:15
0-06 MIN
पृथ्वी

9,15
3-00

जन्म समय
इस चक्र में पड़ता है
9,21
0-12
जला

12:15


9,33
0-18
तेजस




9,51
0-24
वायु




10,15
0-30
AKASHA (जन्म TATWA)




10,45




विवरण
हम  बुधवार  चक्र को उदाहरण के रूप में समजते है,सूर्योदय 6.15  है और जन्म १०.३० है  और इस में ३ घंटे की आरोह-अवरोह साइकिल को add करते  है सूर्योदय समय  6.१५ + ३.००= ९.१५ ... जन्म का समय १०.३० है इस लिए दुबारा हमें ३ घंटे की आरोह-अवरोह साइकिल को add करनी पड़ेगी  ९.१५+ ३.००= १२.१५ ये समय आरोह के अर्ध-भाग में आत्ता है याने ९.१५ से १०.४५ am तालिके में दर्शाए हुए प्रमाण-माप के अनुसार आकाश तत्व हुआ जो  गुरु ग्रह के द्वारा संचालित है.तत्व के चक्र-साइकिल खोजने के लिए जन्म-समय और दिन-वार को  ३ घंटे की चक्र में ढालना पड़ता है बाद हम जन्म के तत्व को बड़ी आसानी से उजागर कर सकेंगे. 


यहाँ एक दूसरा  उदाहरण भी समजते है; यदि कोई जातक  पृथ्वी तत्व  में पैदा हुए और उनका स्वामी ग्रह बुध जन्म कुंडली में कमजोर हो या तटस्थ हो तो उनका प्रभाव चेता-तंत्र, तंत्रिका तंत्र और पाचन प्रणाली पे होता है.इस साथ बुध के और भी कारकत्व को भी लक्ष में लेना चाहिए.

यदि सूर्य ग्रस्त होता  है, तो  रक्त परिसंचरण और सामान्यत: शरीर पे उनका दुष्प्रभाव होगा.  इसके अलावा सूर्य हृदय रोगों, हड्डी और ग्रंथियों भी का कारक है. यदि शनि ग्रस्त है तो  जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों अथवा  उसके अन्य कारकत्व  के साथ  आमवाती दर्द पीड़ित शरीर होगा.यदि  बृहस्पति ग्रस्त हो तो  मोटापा,मधु-प्रमेह ,शुक्राणु की कमी या अल्प जीवित शुक्राणु ,या शुक्राणु की मंद गति , और जिगर की बीमारी हो जाती  है, हर्निया और कोलेस्ट्रॉल समस्याओं के भी संकेत हैं. अगर चन्द्र ग्रषित हो तो  मन और मासिक धर्म चक्र, mammary ग्रंथियों पर  बुरा प्रभाव पड़ता है . जब मंगल ग्रह दुर्घटनाओं, चोटों, रक्त की हानि का कारण बनता है और आम से पीड़ित  महिलाओं में बुरा प्रभाव देता है.जब शुक्र  मकर-ध्वज नपुंसकता, यौन रोग, प्रजनन के बाह्य अंग की बीमारी, उत्साह की कमी. निरषता, आदि दे सकते हैं 
यहाँ मेने ग्रह और उनके साथ जुडी हुयी रोगों की एक बहुत छोटी सूची  दी है.   इस तरह जन्म तत्व से  जुड़े ग्रह के आधार से  संभवित  बीमारियों का पता लगा सकेंगे.इस विषय की गहेराय में जाने के लिए  ज्योतिषी-आचार्य  को जातक की  पूरी कुंडली को  देखना चाहिए साथ साथ  दशा,प्रत्यंतर दशा, भुक्ति ..इत्यादि का अभ्यास भी इतन ही जरुरी  है .


पाठक मित्रो   वेदिक दर्शन  आधारित   ये मेडिकल -एस्ट्रोलोजी  का मेरा प्रथम लेख नहीं है.... ये थियरी  से मुझे और मेरे आयुर्वेदिक डॉ. को काफी प्रशंसनीय और सटीक परिणाम मिल रहे ....मेरी  एक छोटी सी इच्छा है में आयुर्वेदिक डॉ और इंस्टिट्यूट , कोलेज,में ये थियरी फिर से  संजीवनी तरह फेलती जाय और काफी मरीजो को उनका लाभ संजीवनी की भांति मिले.
आप के संपर्क में आये हुए किसी भी आयुर्वेदिक डॉ. को इसके बारे में जानकारी देने का छोटा सा कष्ट कीजिये, ये सब्जेक्ट पे अधिक जानकारी के लिए मुझे फोन कर सकते हो. www.ishanastrovastu .co .in  
डॉ हितेश मोढा