24 February, 2010

Dhan, labh aur bhagya--A study by Dr Hitesh Modha

 वित्,लाभ और भाग्य 

 धर्म, अर्थ, काम और  मोक्ष ये चार पुरुषार्थ पैकी  अर्थ और काम  भौतिक है.इस लिए सभी लोगो को उन में ही अधिक तर रूचि होना वो स्वाभाविक है.इधर वित्-प्राप्ति के योगो की समीक्षा वेदिक ज्योतिष के अनुसार की है.केवल विरक्त और निर्मोही व्यक्ति को छोड़ के एसी कोई व्यक्ति नही है. जिनको धन-प्राप्ति की आकांक्षा ना हो. सब लोग उनके लिए सतत प्रयत्नशील होते है. फिर भी हम देखते है की कठिन से कठिन महेनत करने के बावजूद भी यथा-योग्य धन नहीं मिलता.एक क्षेत्र में एक समान उर्जा और कौशल वाले समान रूप से महेनत करते है पर उनमे से एक वहा धन का ढेर होता है.दुसरे के वहा सिर्फ  जीवन की आवश्यकता  अनुसार मिलता है या फिर  आवश्यकता के हिसाब से नहीं मिलता. एसा बार बार इस युग में देखने को मिलता है. एसा क्यों ?????? ये प्रश्न हमारे मन में बार बार होता होगा, इस में कोई संदेह नहीं. 
वेदिक ज्योतिष के आधारित जन्म-कुंडली में दों  भाव(स्थान)धन-विषयक है. (१)द्वितीय भुवन --धन स्थान (२)एकादशम भुवन --- लाभ स्थान काफी लोगो धन सम्भ्न्धित बाबत के लिए  भाग्य स्थान को भी देखते है. परन्तु, भाग्य स्थान  का सम्बन्ध और विस्तार काफी बड़ा है और दुसरे अन्य भाव से भी है.धन-स्थान धन के संचय और बचत का ही निर्देश करता है जब की लाभ-स्थान आय (Income ) का निर्देश करता  है.इसी लिए आया सम्भ्धित समस्या के लिए सब से पहेले लाभ स्थान (११वा  भाव)का अभ्यास करना अति जरुरी होता है. क्योंकि जो आय का प्रवाह ही ना होगा तो संचय का प्रश्न ही खड़ा नहीं होगा.  ग्यारवे भाव को थोडा इसी अभिगम से अभ्यास करना जरूरी है.(१)अगर लाभ स्थान में गुरु स्वगृही और साथ में नेप्चून हो तो जातक की आमदानी बहोत अच्छी होगी.(२)अगर गुरु अकेले ही ११वे भाव में हो तो आय स्थिर होगी.लेकिन साथ में शुक्र अथवा बुध होगा अथवा १२वे का स्वामिग्रह साथ में होगा तो आय अल्प हो जाएगी.(३)११वे भाव में चन्द्र-गुरु साथ में होगा तो विरासत में बड़ी सम्पति मिलेगी. अगर चन्द्र सवा राशी में स्थित होगा तो माता के परिवार या मामा और नेनिशाल से अधिक धन की प्राप्ति होगी. अगर गुरु धनु राशी होगा तो पिता के परिवार से विरासत में बड़ा व्यवसाय अथवा उद्योग मिलेगा. या फिर गुरु के साथ ४थे भाव का स्वामी होने से विरासत में धन-सम्पति का निर्देश किया जाता है.
(४) धनेश और भाग्य्येश लाभ-स्थान में होगा तो जातक की आय बहोत अच्छी होगी. साथ में  लाभेश भी होगा तो जातक अंत्यंत धनवान होगा.
(५)धनेश-भाग्येश में से किसी एक ग्रह लाभ् स्थान  में हो और दूसरा १२वेस्थान में पड़ा होगा तो जातक की आर्थिक स्थिति सामान्य बन  जाती है.
(६)११वा  स्थान साथी ढंग से ठीक होगा लेकिंग द्वादेश की द्रष्टि ११वा स्थान में होगी तो भी जातक की आमदानी माध्यम होगी या कड़ी महेनत के बाद मुश्किल से गुजरा जितना धन जूता पायेगा.
(७) लाभेश ६, ८ , १२वा स्थान में होगा या शत्रु  राशी में होगा  तो भी आय का प्रवाह मंद हो जाता है (आय नहीं).

(८)लाभेश दशवे स्थान पे होगा तो भी आय मंद होगी.
    अब आर्थिक स्थिति के संदर्भ में धन-स्थान का अभ्यास जरूरी है. देखते है क्या कहेता है धन-स्थान..
 (१) पहेले बताया है की धन स्थान आय के लिए नहीं है. धन के संचय के लिए है.इसी लिए १२वे स्थान का अभ्यास भी जरूरी है क्योंकि १२व स्थान व्यय का है.
(२)लाभ स्थान की तुलना में धन स्थान की विशेषता ये है की यहाँ गुरु के साथ शुक्र हो तो धन संचय या luxuries  और वैभव में काफी बढ़ोतरी होती ही जाती.या ये दोनों ग्रह ८वे स्थान में होगा तो भी ये ही फल मिलेगा. ओशोजी की और महा नायक अमिताभजी, ए आर रहेमान  की कुंडली में मेने ऐसे योग पाये है.दोने में से एक ग्रह धन स्थान में और दूसरा  भाग्य या लाभ स्थान में होगा तो भी ये योग बनते है.
(३) भाग्येश और धनेश के बिच में परिवर्तन योग होगा तो भी धन संचय काफी मोटा होगा.

(४)अगर गुरु या शनि धनेश होके गुरु या शनि की युति में होगा तो जातक के पास इतना  धन संचय होगा  की वो दुबारा  गिन या खोल भी नहीं पायेगा.
(5)धनस्थान का स्वामी पराक्रम स्थान में होगा जातक के पास अच्छी मोटी धन और  सम्पदा होगी 
(६)पराक्रम और धन का स्वामी परावर्तन योग में होगा या धनेश और पराक्रमेश का परावर्तन होगा तो बड़ा धन संचय होगा. अगर यहाँ मंगल और शुक्र की राशी होगी या ग्रह तो जातक की सभी कार्य-काज  धन के लिए ही होगा.
(७) धनेश पांचवे स्थान में होगा या पंचमेश स्वगृही होगा या मित्र राशी में (५वे में) स्थित होगा  तो जातक के पास अखूट दौलत और सम्पदा होगी.
ये दोनों स्थान के अभ्यास के बाद भाग्य स्थान परत्वे एक ही बाबत का रहस्योद्घाटन करने का ही बाकि रह गया है.
सब से पहेले ये जान लेना जुरुई है भाग्य का अर्थ केवल धन-सम्पदा ही नहीं. मानवी का व्यक्तित्व,समाज में उनका स्थान,यश-कीर्ति, शिक्षा, परिवार का सुख, अखंड आरोग्य, (total positivities )
ये सभी सदभाग्य ही है. अगर धन कम हो  या फिर ज्यादा लेकिन ये चीजे ना हो तो ???????????
"धर्मक्रियायाँ हि मन:प्रव्रुतिर्भोग्योपपति विमलं च शीलम.तिर्थप्रयानाम प्रणय: पुरानै: पुन्यालये सर्वमिदं  प्रविष्टम".
अर्थात: धर्म के कार्य में मन की प्रवृति,भाग्य की प्राप्ति,निर्मल चारित्र, तीर्थ-यात्रा, तथा शाश्त्र प्रति प्रीति,इतनी बाबत पुन्यालय में याने भाग्य स्थान में देखि जानी चाहिए. इसी श्लोक में कंही भी वित् या धन या आय का उल्लेख हि नहीं. ये बात नोंधनीय है. भोग्योपपति का अर्थ भोग-विलास की प्राप्ति  नहीं है (ये भी खास नोंध लो) बल्के, पूर्व जन्म के कर्म के  फलानुसार जो परिणाम भुगदना बाकि है उसी को भोग्य कहा जाता है. कभी कभी हम इस जन्म में जाने अनजाने  में कोई बिना स्वार्थ के किसी दुसरे के हित में या देश या समाज के हेतु जो कर्म किये होते उनका भी फल भाग्य स्थान से देखा जाता है. मेरे  सभी पाठको मेने कुंडली के तीनो भाव यहाँ चर्चा की लेकिन भाग्य स्थान थी चर्चा वृतांत में की है क्योकि आप भी भाग्य स्थान के बारे थोडा सोच सकोंगे और इसी विषय पे कार्य करोगे इसी उम्मीद के साथ ये लेख यही  समाप्त करता हु.किसी भी शंका या प्रश्न के निवारण हेतु फ़ोन कर सकते हो. अथवा आप मेरी वेब साईट की मुलाकात ले सकते हो www.ishanastrovastu.co.in 
डॉ हितेश मोढा     :
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